“पंखों से कुछ नहीं होता, हौंसलों से उड़ान होती है, मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है” जी हाँ यह कहावत तो आपने सुनी होगी लेकिन इस कहावत को चरितार्थ करके दिखाया है जोगिन्दरनगर की होनहार बेटी अनामिका ने. अनामिका के संघर्ष की कहानी चुनौतियों से भरी हुई है लेकिन अपने सपनों के आगे अनामिका ने दिव्यांगता को कभी बाधा नहीं बनने दिया.
नेट की परीक्षा में पाया प्रथम स्थान
अनामिका ने फाइन आर्ट में सीबीएसई की ऑल इंडिया लेवल की नेट परीक्षा की दिव्यांग श्रेणी में पूरे प्रदेश में पहला स्थान हासिल किया है. अनामिका ना तो बोल पाती है और न सुन सकती है. अनामिका के पति सलिल सूद भी मूक बधिर हैं. लेकिन एक-दूसरे के प्रति प्यार और विश्वास की कामयाब कहानी दूसरों की प्रेरणा स्रोत बन गई है.
सास ससुर ने की बहू की तारीफ़
शादी के बंधन में बंधने के बाद अनुज सूद और अनामिका एक दूसरे को न केवल सहारा दिया, बल्कि एक-दूसरे का आत्मविश्वास भी जगाया. सलिल सूद वर्तमान में चंडीगढ़ में निजी कपनी के बड़े ओहदे पर सेवा दे रहे हैं. ससुर अनुज सूद और सास सारिका सूद ने बहू की इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर की. उनका बेटा सलिल सूद भी दिव्यांग है और आजकल वह चंडीगढ़ में नौकरी कर रहा है. कुछ वर्ष पूर्व ही दोनों की शादी हुई थी। दोनों ही सुनने और बोलने में अक्षम हैं.
पेंटिंग में रहती है व्यस्त
अनामिका बचपन से काफी तेज थी. उसने जिंदगी की चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार किया और अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए अधिकांश विषय में टॉप किया है. पोस्ट ग्रेजुएट अनामिका इस समय पेंटिंग कर अपना समय व्यतीत कर रही है. उसकी पेंटिंग की कई प्रदर्शनियां जिला संग्रहालय धर्मशाला में लगी हुई हैं.
माँ बाप को है बेटी पर गर्व
अनामिका की माता अनीता और पिता अनिल ने कहा कि अनामिका कभी भी किसी पर निर्भर नहीं रहती और अपना सारा कार्य वह स्वयं ही पूरा करती है. वह परिवार का सहारा बनकर एक बेटे की भूमिका निभाना चाहती है.
दिव्यांगता नहीं बनी बाधा
अनामिका ने कभी भी अपने सपनों के आगे दिव्यांगता को बाधा नहीं बनने दिया. बल्कि उसने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया. अपने ससुराल और मायके का सिर गर्व से ऊंचा किया है.
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