प्रकृति को सहेजने को लेकर इंसानों में जागरूकता की कमी जगजाहिर है. ऐसे में अगर आपको यह बताया जाए कि एक चिड़िया ऐसी भी है जो जरा सी भी गंदगी झील में पड़ने नहीं देती, तो आपको कैसा लगेगा?
जी हां, यह सच है कि कुदरत की गोद में अठखेलियां करती कुल्लू की सरयोलसर झील की सफाई का जिम्मा एक नन्ही सी चमत्कारी चिड़िया ‘आभी’ ने संभाल रखा है. शीशे की तरह चमकने वाली इस झील को साफ सुथरा रखने का श्रेय ‘आभी’ को ही जाता है.
कहते हैं कि एक किलोमीटर के दायरे में फैली सरयोलसर झील में अगर एक तिनका भी गिरता है तो तैयार बैठी नन्ही चिड़िया ‘आभी’ उसे झट से उठाकर बाहर फेंक देती है. फिर कुछ गिरने का इंतजार करती रहती है. इस कारण से झील हर पल साफ़ नज़र आती है. नन्ही ‘आभी’ के नाम से मशहूर इस चिड़िया ने सदियों से झील की सफाई का दायित्व संभाल रखा है.
दरअसल ये छुई-मुई सी चिड़िया आम लोगों को कम ही दिखाई देती है. इसे केवल कूड़ा पत्ता उठाते ही देखा जा सकता है. स्थानीय लोगों का दावा है कि आभी चिड़िया केवल सरयोलसर में ही पाई जाती है. केंद्र सरकार भले ही स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन पहाड़ पर एक ऐसी नन्ही चिड़िया है जो सदियों से झील की रखवाली कर इसकी स्वच्छता को बनाए रखती है.
इस चिड़िया के संरक्षण और कुनबा बढ़ाने में आज तक कोई पहल नहीं हुई. हालांकि, किताबों में आभी का मिसाल दी जाती हैं. जिला कुल्लू के आनी उपमंडल में 10 हजार फुट की ऊंचाई पर सरयोलसर झील से कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं. क्षेत्र की महिलाएं गाय के पहले घी का चढ़ावा इस झील में चढ़ाती हैं. कहा जाता है कि जो भी अपनी गाय के पहले घी को चढ़ाकर इस झील की परिक्रमा करते हैं उस घर में कभी भी दूध-घी की कमी नहीं रहती. बूढ़ी नागिन उनकी रक्षा करती हैं.
बता दें कि आनी के जलोड़ी जोत से करीब 6 किमी पैदल सफर करने के बाद सरयोलसर झील तक पहुंचा जा सकता है. सालाना यहां हजारों लोग और श्रद्धालु आते हैं.