हुण चढ़ी बाबे नू..

4-5 भंगड़ दोस्त थे. से जाहली जे भंग पींदे ता बोलदे थे जै भोले नाथ. इक सूटा लगाणा कने बोलणा “जै भोले नाथ”. भगवान् भोले नाथ तिन्हा भंगड़ा गे प्रसन्न होई गै. भोले नाथे सोच्या क्युं ना इन्हा जो दरशन दित्या जाए. इक दिन भंगड़ जंगला मंझ भंग थे लगीरे पींदे ता भोले नाथ साधू रा भेस बणायी कने तिन्हा वाल पूजी गै. भंगडे तिन्हा रा बड़ा आदर किता कने तिन्हा जो भंग ऑफर कीती.

बाबे इक सुटा मारेया कने चिलम खाली. चिलम दोबारा भरी गेई. बाबे भीरी इक सुटा मारेया कने चिलम खाली. इहियाँ करदे-करदे बाबा पंज चिलमा पी गेया. भंगड़ परेशान! ओ आरा असे ता इक्को ही चिलमा कने मुंधे होई जांदे कने ऐ ता पंज पी गेया कने हिलया नी, सै अप्पु मंज बोल्लो. चलो कोई गल्ल नी.. हुण तिन्हे डबल डोज़ बनायीं कने चिलम भरी किती पर बाबा भीरी पंज पी गेया. भंगड़ हैरान परेशान!

बाबे सोच्या चलो भतेरा होया. हुण इन्हा जो अपणी असलियत दस्सी जाए. सै बोल्ले, देखो जी मैं हा शिव शंकर भोले नाथ. मैं तम्हारी भगतिया कने सेवा गे बड़ा प्रसन्न होया. मंगो जो भी बरदान मंगणा. हुण पूरा करदा हऊँ…

बाबे रे इतना बोलदे ही इक भंगड़ उठी गेया कने जोरा कने बोल्या, “ओए चढ़ गेई बाबे नू.. ओए हुण चढ़ी बाबे नू भंग..”

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