पुरानी पेंशन बहाली के लिए हिमाचल के कर्मचारियों ने खुलकर हल्ला बोला। यहां तक कि प्रदर्शन किए, धरने पर बैठे। लाख जतन करने के बाद कर्मचारियों की पेंशन बहाल हुई। अब उसी पेंशन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं या यूं कहें कि यह पेंशन बंद भी हो सकती है।
ऐसा इसलिए कि हिमाचल पहुंचे वित्त आयोग के अध्यक्ष डा. अरविंद पनगढिय़ा ने साफ किया है कि कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजना दोबारा बहाल होने और मुफ्त की रेवडिय़ां बांटने के मामले उनके ध्यान में हैं। इन बिंदुओं को फाइनांस कमीशन अपनी रिपोर्ट में एड्रेस करेगा।
बता दें कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के लिए ओपीएस का भी अहम रोल है। क्योंकि कर्मचारियों ने यह मांग पूर्व सरकार के समय में ही की थी, हालांकि उस वक्त सरकार ने इसे देने से इनकार तो नहीं किया था, लेकिन बहाल भी नहीं की थी। इसके बाद विधानसभा चुनावों में कांग्र्रेस पार्टी ने इसे प्रमुख मुद्दा बना लिया।
साथ ही मुकेश अग्रिहोत्री ने महिलाओं को 1500 रुपए देने की भी घोषणा चुनावों के दौरान कर दी। इसके बाद सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस की सरकार बन गई।
सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने ओपीएस बहाल कर दी। इसके बाद अब लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनावों के बाद महिलाओं को 1500 रुपए प्रति महीना भी मिलना शुरू हो गए। हालांकि सभी जिलों में यह राशि मिलना शुरू नहीं हुई है।
यह है कारण
हिमाचल में आय के साधन सीमित हैं। बजट का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में चला जाता है। हिमाचल में बरसात अपने तेवर हर साल दिखाती है और हर साल करोड़ों का नुकसान होता है।
यह बात 16वें वित्त आयोग ने भी मानी है। चूंकि आयोग के अध्यक्ष डा. अरविंद पनगढिय़ा ने कहा है कि वह पुरानी पेंशन दोबारा बहाल होने और मुफ्त की रेवडिय़ां बांटने के मामले उनके ध्यान में हैं।
इन बिंदुओं को फाइनांस कमीशन अपनी रिपोर्ट में एड्रेस करेगा। उसी के बाद वित्त आयोग हिमाचल को पैसा देगा। ऐसे में अगर वित्त आयोग ओपीएस और महिलाओं को 1500 देने के मामलों पर मंथन करता है और इसके लाभ-हानियों पर सोच विचार करता है, तो इन दोनों योजनाओं पर संकट मंडरा सकता है।
2003 में बंद हुई ओपीएस, डा. मनमोहन सिंह ने भी किया था समर्थन
पुरानी पेंशन बहाली पर केंद्र सरकार का रुख साफ, वह इसके पक्ष में नहीं है, क्योंकि इससे सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है। पुरानी पेंशन 22 दिसंबर, 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ओपीएस को हटाकर नई पेंशन स्कीम लागू की, जिसे एनपीएस का नाम दिया गया।
इसके बाद 2004 में यूपीए सरकार आ गई और डा. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, उन्होंने भी ओल्ड पेंशन बंद करने के फैसले को सही ठहराया। फिर 21 मार्च, 2005 को यूपीए सरकार लोकसभा में पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डिवेलपेंट अथारिटी ऑफ इंडिया को स्थापित करने के लिए एक विधेयक लाई।
एनपीएस यानी न्यू पेंशन स्कीम को लाने के लिए ही रेगुलेटरी बॉडी बनाई गई। पेंंशन रिफॉर्म पर डा. मनमोहन सिंह ने मुख्यमंत्रियों की मीटिंग भी बुलाई थी। उस वक्त उन्होंने कहा था कि वित्त मंत्रालय ने पुरानी पेंशन पर गहन मंथन किया है।
यह पेंशन अगर जारी रही, तो भविष्य में वित्तीय दिक्कतें बढ़ जाएंगी। राज्यों के विकास के लिए फंड की जरूरत है। ऐसे में पुरानी पेंशन से वित्तीय जोखिम बढ़ जाएंगे। सीमित संसाधनों के चलते पेंशन में बदलाव जरूरी है।
डा. मनमोहन सिंह के भरोसेमंद अधिकारी रहे एवं योजना आयोग पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने भी कहा था कि पुरानी पेंशन बहाल करने का मतलब है वित्तीय दिवालियापन।