विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर के अधीन प्राचीन एवं ऐतिहासिक टेढ़ा मंदिर के रास्ते के चल रहे निर्माण व मुरम्मत कार्य के चलते खुदाई के दौरान अकबर द्वारा बनवाई गई 500 साल पुरानी नहर के अवशेष मिले हैं। इस नहर से अकबर के सिपहसालार जंगल के बीचों-बीच से पहाड़ों का पानी निकाल कर मुख्य मंदिर ज्वालामुखी में माता की पावन व अखंड ज्योति को बुझाने के लिए लाए थे। लेकिन अकबर का घमंड तब चूर -चूर हो गया था जब वह इसमें सफल नहीं हो सका था तथा माँ के आगे शीश झुकाना पड़ा था.
नहीं मिली थी सफलता
हालांकि पानी लाने के बावजूद माँ की कृपा से अकबर को सफलता नहीं मिली थी। तक अकबर का घमंड चूर चूर हो गया था और माँ के आगे शीश झुकाना पड़ा था. तब से इस नहर का इतिहास ज्वालामुखी से जुड़ा हुआ है।
भूकम्प के कारण मिट चुका था नहर का वजूद
1905 में जिला कांगड़ा में आए प्रलयंकारी भूकंप के कारण जहां ज्वालामुखी नगर के कई भवन मिट्टी में मिल गए थे, वहीं प्राचीन एवं ऐतिहासिक रघुनाथ जी का मंदिर टेढ़ा हो गया था और आज 115 साल के बाद भी यह मंदिर टेढ़ा ही है। इसके साथ ही यहां मौजूद नहर का वजूद भी लगभग मिट चुका था।
हाल ही में स्थानीय विधायक रमेश धवाला ने अधिकारियों सहित दौरा कर टेढ़ा मंदिर के सौंदर्यीकरण और रास्तों के मरम्मत व रखरखाव के लिए आदेश दिए थे। इसकी तामील करते हुए प्रशासन ने यहां पर सड़क व सीढि़यों की मरम्मत का कार्य शुरू कर दिया।
खुदाई के दौरान चला पता
इसी दौरान खुदाई के चलते यहां पर लगभग 500 साल पुरानी शहंशाह अकबर की नहर के अवशेष मिले हैं, जिससे यह प्रमाणित हो गया है कि कभी यहां पर शहंशाह अकबर ने मां ज्वालामुखी की पावन व अखंड ज्योतियों की परीक्षा ली थी।
मामला सामने आते ही विधायक रमेश धवाला ने प्रशासन को आदेश दिए कि इस नहर के अवशेषों को सहेज कर रखा जाए, ताकि बाहर से आने वाले यात्रियों को एक आकर्षण का केंद्र मिल सके।
शुरू हुई अवशेषों की तलाश
उनके आदेश पर मंदिर प्रशासन ने इस नहर के अवशेषों को जगह-जगह तलाशना और सहेजना शुरू कर दिया है। जहां-जहां जरूरत होगी, इस नहर का जीर्णोद्धार किया जाएगा और इसको इस तरह से सहेज कर रखा जाएगा, ताकि आने वाले कई सालों तक यह एक आकर्षण बन कर यात्रियों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक बन सके।
सहेज कर रखा जाएगा नहर को
इस पर मंदिर न्यास काफी खर्च करके इसे बेहतरीन बनाने के प्रयास में है। इस संदर्भ में एसडीएम ज्वालामुखी अंकुश शर्मा ने कहा की शहंशाह अकबर की इस प्राचीन नहर को सहेज कर रखा जाएगा, ताकि यात्रियों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र बन सके।
यह कहना था बुजुर्गों का
हिमाचल प्रदेश योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष रमेश धवाला ने कहा कि क्षेत्र के बुजुर्ग लोग अक्सर उनसे कहा करते थे कि 1905 के भूकंप के बाद शहंशाह अकबर की नहर जंगल में मलबे के नीचे दब गई है, उसे बाहर निकाल कर लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाया जाए।
भक्तों के लिए होगी आकर्षण का केंद्र
उन्होंने बड़े प्रयास किए, परंतु यह नहर मिलती नहीं थी। परंतु अब नहर नजर आई है, जिसको झाडि़यों से और मलबे के नीचे से निकाला गया है और यहां काफी लंबी लाइन नजर आने लगी है।
कई स्थानों पर यह नहर पहाड़ों के नीचे दब जाने की वजह से और मिट्टी से क्षतिग्रस्त हो गई है, परंतु जितना भी संभव हो सकेगा, इस नहर को सजीव रूप दिया जाएगा, ताकि भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बन सके।
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जय माँ ज्वालामुखी