ब्रिटिश इंजीनीयर कर्नल बीसी बैटी द्वारा 1926 में निर्मित जोगेंद्रनगर के शानन रोपवे और ऐतिहासिक ट्रॉली को हेरिटेज के रूप में विकसित करने में प्रदेश हाईकोर्ट ने दिलचस्पी दिखाई है। पर्यटन के रूप में रोपवे को इस्तेमाल कर लोगों की आर्थिकी मजबूत करने की भी योजना बताई जा रही है।
ख़बर के अनुसार, रविवार को हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं की विशेष निरीक्षण टीम के साथ विधायक प्रकाश राणा व एसडीएम अमित मेहरा ने शानन से लेकर वींचकैंप और बरोट तक बिछे रोपवे का निरीक्षण कर हेरिटेज की संभावनाएं तलाशी। तमाम विस्तृत रिपोर्ट उच्च न्यायालय के समक्ष रखी जाएंगी। इसके बाद ऐतिहासिक रोपवे व ट्रॉली को हेरिटेज के रूप में विकसित करने का काम शुरू होगा।
एशिया की पहली रोपवे अंग्रेज़ों की देन
110 मेगावाट पनविद्युत शानन परियोजना की बरोट स्थित रेजर वायर के निर्माण कार्य व बरोट से शानन पावर हाउस तक बिछने वाली पैनस्टॉक, देखरेख, मरम्मत के उद्देश्य से परियोजना संस्थापक कर्नल बीसी बैटी ने रोपवे का निर्माण किया था। एशिया की पहली रोपवे पर छह ट्रॉलियों को वेट वेट¨लग तकनीक का इस्तेमाल कर आवागमन करवाया जाता है।
एशिया की पहली रोपवे पर चलने वाली ट्रॉली को स्टील रोपवे और इलेक्ट्रिक मोटर के माध्यम से चलाया जाता है। समुद्र तल से करीब आठ हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंचने वाली ट्रॉली अदित जंक्शन, वींचकैंप, हैडगेयर, कठयाडू और जीरो प्वाइंट से होते हुए बरोट तक पहुंचती है।
ख़स्ताहाल हो चुकी है ट्राली लाइन
ग़ौरतलब है कि वर्तमान में इस ऐतिहासिक रोप वे का शानन से विंच कैम्प तक हिस्सा ही परिवहन योग्य है जिसकी मुरम्मत और रख-रखाव की जानी ज़रूरी है। वहीं, विंच कैम्प से बरोट तक यह लाइन बेहद बुरी हालत में है। कई स्थानों पर भू-स्खलन के कारण लाइन या तो दब चुकी है या बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। वहीं, कई स्थानों में लाइन के हिस्से ग़ायब हो चुके हैं। ज़ाहिर है लोग महज़ लोहे के लिए इस ऐतिहासिक धरोहर को ख़त्म करने से भी गुरेज़ नहीं कर रहे हैं।
पिछले कई वर्षों से स्थानीय प्रशासन और चुने हुए प्रतिनिधियों की नाकामी के कारण मिटने के कगार पर खड़ी यह धरोहर अपनी बर्बादी पर आँसू बहा रही है। भला हो अंग्रेज़ों का जिन्होंने कठिन हालात में इस परियोजना को अंजाम दिया लेकिन उनके द्वारा दी गयी सौग़ात को सहेजना तो दूर इसे बचाने में भी किसी तथाकथित भारतीय नागरिक प्रतिनिधि या प्रशासन ने कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। आरोप लगते रहे कि पंजाब के अधीन होने के कारण इसमें कुछ भी करने में स्थानीय प्रशासन असमर्थ है। अब हाईकोर्ट की इस पहल से उम्मीद की एक किरण जागी है। अब देखना यह है कि इस क़वायद को सिरे चढ़ाने में स्थानीय प्रशासन दिलचस्पी दिखाता है।
माननीय न्यायालय पहले भी कर चुका है परियोजना में मदद
इससे पहले बरोट मार्ग के सुधार और उहल नदी पर पानी की निकासी पर प्रभावित ट्राउट मछली पालकों की समस्याओं पर प्रदेश हाईकोर्ट में दायर एक याचिका पर संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने साहसिक निर्णय देकर लोगों को राहत प्रदान की थी। बरोट में सार्वजनिक शौचालय सुविधा उपलब्ध करवाने और परियोजना की रेजरवायर की नियमित डीसि¨ल्टग पर भी हाईकोर्ट ने उचित आदेश पारित किए थे। अब रोपवे को रिस्टोर कर हेरिटेज के रूप में विकसित करने में पहल करने पर माननीय न्यायालय साधुवाद का पात्र है।
बर्बादी के कगार पर खड़ी पहाड़ी पर चढ़ने वाली दुनिया की एकमात्र ट्राली ट्रेन!