हिमाचल में हर गाँव और हर मौसम के साथ कई स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किये जाते हैं जिन्हें लोग बड़े ही आनन्द के साथ खाते हैं. इन पकवानों के साथ -साथ और भी खान -पान की ऐसी चीजें हैं जो सर्दी के मौसम में तैयार की जाती हैं. जोगिन्दरनगर और इसके आस पास माह और पेठू की बड़ियाँ बना दी गई हैं तो कहीं यह बनाने का कार्य चला हुआ है. आप भी सीखें बड़ियाँ बनाने की विधि.
क्या होती हैं बड़ियाँ
बड़ियाँ कई तरह की होती हैं. माह पेठू, गान्द्लू, मूंग और आंवले आदि की कई तरह की बड़ियाँ बनाई जाती हैं जिनमें से माह और पेठू की बड़ियाँ बड़ी ही स्वाद होती हैं जिन्हें चावल और रोटी के साथ बड़े ही चाव के साथ खाया जाता है.
सबसे पहले चाहिए पेठू
इनमें प्रमुख व्यंजन हैं बड़ियाँ. लोग गेहूँ की फसल बीजने के बाद फुर्सत में होते हैं तथा बड़ियाँ बनाने का कार्य शुरू कर देते हैं. सबसे पहले तो पेठू का इंतजाम करना पड़ता है. जितने पेठू होंगे उतनी ही बड़ियाँ तैयार होंगी. ये पेठू बरसात के मौसम में तैयार हो जाते हैं.
अब लें साबुत माह
पेठू के बाद माह का भी इंतजाम करना पड़ता है. पहले किसान माह स्वयं खेतों में उगाते थे लेकिन समय के साथ साथ अब बाज़ार से ही खरीदते हैं. माह को घुरटू में डाल कर दो भागों में तोड़ा जाता है फिर उसे भीगने के लिए डाल दिया जाता है.
बारीक पीसा जाता है माह
एक दिन भीगने के बाद माह को घर की ही मशीन या सिल और बत्तू से बारीक पीसा जाता है. उसके बाद पेठू को छीला जाता है और उसके टुकड़ों को कद्दूकस किया जाता है. माह और पेठू को एक बड़ी परात में आपस में मिलाया जाता है. फिर शुरू होता बड़ियाँ बनाने का काम.
चंगेर में सजती हैं बड़ियाँ
बड़ी बड़ी चंगेर में बड़ियाँ बनाने का कार्य शुरू होता है. फूल और द्रभ के साथ परात में सजाया जाता है. उसके बाद घर की महिलायें बड़ियाँ बनाने का कार्य शुरू करती हैं. बड़ियों का आकार आपके ऊपर निर्भर करता है. मौसम को भी ध्यान में रखा जाता है.
दो चार दिन सूखने दें
बड़ियाँ बनाने के बाद उसे चंगेर में सूखने के लिए रखा जाता है. दो चार दिनों में बड़ियाँ सूख जाती हैं. उसके बाद उन्हें संभाल कर रख दिया जाता है तथा सालों तक उनको स्वाद के साथ खाया जाता है.
स्वाद के साथ परोसें
अब बड़ियाँ खाने के लिए तैयार हैं. तड़के में परिवार के हिसाब से बड़ियाँ भूनने के बाद उसे खाने के लिए परोसा जाता है.