भारत सरकार द्वारा बदले गए मोटर व्हीकल एक्ट के एक प्रावधान के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल के कारण हिमाचल में व्यापक असर हुआ है। मंगलवार को अधिकांश शहरों के पेट्रोल पंप ड्राई हो गए। प्राइवेट बसों को डीजल नहीं मिला और एचआरटीसी के भी 138 रूट बंद करने पड़े। ट्रक ऑपरेटरों की हड़ताल के कारण पेट्रोल-डीजल के टैंकर नहीं पहुंचे, जिस कारण कुछ जिले ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
इनमें कांगड़ा, चंबा, मंडी और सिरमौर शामिल हैं। ऊना समेत कुछ जिलों में निजी बस ऑपरेटरों ने ट्रक ड्राइवर की हड़ताल का समर्थन करते हुए बसें नहीं चलाईं, जबकि कई जिलों में डीजल न मिलने के कारण बसें खड़ी रहीं।
शिमला शहर में प्राइवेट बस ऑपरेटर बुधवार को हड़ताल करेंगे। ऊना जिला में निजी स्कूलों ने दो दिन के लिए स्कूल बंद कर दिए हैं। हालांकि ऐसा फैसला किसी और जिला में नहीं हुआ। लोगों को सबसे ज्यादा दिक्कत शहरी क्षेत्र में हुई। जैसे ही पेट्रोल-डीजल के संकट का पता चला, लोग अपनी गाडिय़ां लेकर पेट्रोल भरवाने निकल पड़े।
इस कारण शहरों में जिस सडक़ पर पेट्रोल पंप था, वह सडक़ जाम हो गई। कई जिलों के उपायुक्तों ने पेट्रोल-डीजल की राशनिंग के आदेश पहले ही कर रखे थे। शिमला के उपयुक्त आदित्य नेगी ने दोपहर बाद पेट्रोल और डीजल की राशनिंग का आर्डर जारी किया।
यहां अगले आदेशों तक 10 लीटर से ज्यादा तेल नहीं मिल रहा है। पेट्रोल और डीजल की कीमत के कारण अकेले एचआरटीसी के ही 136 रूट बंद करने पड़े। एचआरटीसी के 28 पेट्रोल पंप में से 23 इंडियन ऑयल चलाता है, जबकि तीन हिंदुस्तान पेट्रोलियम और एक पंप भारत पेट्रोलियम का है।
एचआरटीसी को 24 किलो लीटर का एक टैंकर ऊना डिपो से सुबह मिला, जिसे फील्ड में भेजा गया। हिंदुस्तान पेट्रोलियम से मिले चार टैंकर सुंदरनगर, तारा देवी, नगरोटा और पांवटा भेजे गए।
ऊना टर्मिनल सेंटर से भी 10 गाडिय़ां मंगलवार शाम को एचआरटीसी को मिल गईं। परिवहन निगम के एमडी रोहन चंद ठाकुर ने बताया कि अगले 36 घंटे में स्थिति सामान्य होने की उम्मीद है। हमने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि प्राइवेट पेट्रोल पंपों पर भी एचआरटीसी की बसों को प्राथमिकता दी जाए।
क्या है मामला ?
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (AIMTC) के मुताबिक, पिछले दिनों केंद्र सरकार तीन नए आपराधिक कानून ले कर आई है.
इस क़ानून के मुताबिक अगर सड़क हादसा होता है तथा हादसे के बाद में ड्राईवर भाग जाता है तो उसे 10 साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है.
ट्रांसपोर्टर यूनियन ने केंद्र सरकार से मांग की है कि इस क़ानून को लेकर एक बार पुनर्विचार करे।