जोगिन्दरनगर : 164 किलोमीटर लंबी कांगड़ा घाटी रेलवे लाइन (पठानकोट-जोगिन्दर नगर) का अंतिम रेलवे स्टेशन मंडी जिला का जोगिन्दर नगर कस्बा है। ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल बी.सी. बैटी तथा उनकी टीम ने जोगिन्दर नगर स्थित शानन पॉवर हाउस निर्माण के लिए मशीनरी को यहां तक पहुंचाने की दृष्टि से इस रेलवे लाइन का निर्माण किया था।
वर्ष 1925 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने शानन पनविद्युत परियोजना निर्माण को देखते हुए पठानकोट से जोगिन्दर नगर तक 2 फीट 6 इंच नैरो गेज लाइन बनाने का प्रस्ताव रखा।
164 किलोमीटर लंबी यह रेलवे लाइन उत्तर पश्चिम रेलवे के लाहौर मंडल का हिस्सा थी। इस रेलवे लाइन पर एक अप्रैल, 1929 से यात्री यातायात आरंभ किया गया। इस रेलवे लाइन के निर्माण की वास्तविक लागत 296 लाख रूपये थी।
कागड़ा घाटी रेलवे लाइन में कुल 16 क्रॉसिंग स्टेशन तथा 18 यात्री हॉल्ट हैं। इस लाइन पर समुद्री सतह से 1290 मीटर की ऊंचाई पर ऐहजू सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है।
इस रेल लाइन में कुल 1009 पुल तथा 2 सुरंगे हैं। कांगड़ा घाटी के समीप रियोंड नाले पर बना स्टील मेहराब पुल एक गहरे नाले पर बना है, जोकि नदी के स्तर से 200 फीट ऊपर तथा 260 फीट लंबा है।
अप्रैल, 1942 में नगरोटा से जोगिन्दर नगर सेक्शन पर बंद कर इसकी रेलों को ब्रिटीश सरकार द्वारा यूरोप में युद्ध के लिए भेजा गया था। 12 वर्ष के बाद 15 अप्रैल, 1954 को तत्कालीन रेल मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा इसे पुन: आरंभ किया गया।
बाद में पोंग बांध के निर्माण के कारण वर्तमान ट्रैक के पोंग बांध के पानी में डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया था। ज्वांवाला शहर तथा गुलेर के बीच के भाग को 1 अप्रैल, 1973 को बंद कर दिया गया था तथा लाइन उखाड दी गई थी।
24.87 किलोमीटर लंबी पुन: निर्मित लाइन माल यातायात के लिए 15 अक्तूबर, 1976 को तथा यात्री यातायात के लिए 28 दिसम्बर, 1976 को खोली गई।
पूर्व में पठानकोट-जोगिन्दर नगर रेलवे लाइन में विभिन्न सेक्शनों से जैड-ई, जैड-बी, जैड-एफ तथा जैड-एफ एक श्रेणी के रेल इंजन प्रयोग में लाए जाते थे। अब इस रेल लाइन में केवल जैड-डीएम 3 डीजल रेल इंजनों की आवाजें गूंजती है।
वर्तमान में इस रेललाइन की चौड़ाई ज्यों की त्यों है। हर बार रेलवे बजट में भी इस रेल लाइन को नज़र अंदाज ही किया जाता है।
जोगिन्दरनगर से शानन तक अब रेल लाइन जंग खा रही है। उधर बरोट के लिए निकाली गई ट्रॉली लाइन की बरोट की तरफ हालत भी खस्ता है।
अगर इस रेललाइन को नैरोगेज से ब्रॉडगेज़ कर दिया जाए तो यह पर्यटन की दृष्टि से महत्पूर्ण साबित हो सकती है। हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों के लिए पर्यटकों को आने जाने में सुविधा मिलेगी और सरकार का राजस्व भी बढ़ सकता है।
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