जोगिन्दरनगर : उपमंडल के तहत धान की रोपाई का कार्य लगभग पूरा हो चुका है लेकिन वर्षा पर आधारित खेतों में अभी भी धान की रोपाई का कार्य चला हुआ है. किसान अब आधुनिकता के युग में बैलों के स्थान पर मशीनी (ट्रेक्टर) बैल से कार्य लेने लगे हैं जिससे बैल आज विलुप्ति की कगार पर हैं. बैल अब सड़कों पर ज्यादा और खेतों में कभी कभार ही दिखते हैं.
जब होते थे संयुक्त परिवार
जब संयुक्त परिवार हुआ करते थे और बैलों की जोड़ी के अलावा लोग गाय व भैंसें भी पालते थे. लेकिन समय का चक्र ऐसा घूमा कि संयुक्त परिवार टूटते गए और बैल व पालतू जानवर कम होते गए. अब लोगों के पास समय की कमी के कारण न बैल हैं न गाय.
खरीदी जाती थी नई जोड़ी
वो भी समय था जब हर फसल के समय एक नई बैलों की जोड़ी खरीदी और बेचीं जाती थी. लेकिन आधुनिकता के इस युग में अब बैलों का स्थान मशीनी ट्रेक्टर ने ले लिया है. अब तो जमीन के कार्य में भी लोग दिलचस्पी नहीं ले रहे. लेकिन एक अच्छी बात यह है कि लॉक डाउन के चलते अब खाली पड़ी जमीन के अच्छे दिन आ गए हैं.
खाली जमीन के आए अच्छे दिन
लोगों ने काफी हद तक खाली पड़ी जमीन पर कई प्रकार की सब्जियां व फसलें लगाई हैं और अच्छी आमदनी भी कमा रहे हैं. अब खेतों में बहुत ही कम ये बैलों की जोड़ी दिख जाती है और उस पुराने समय की ओर खींच कर ले जाती है जब हर घर में बैलों की जोड़ी हुआ करती थी.
कहीं पालते हैं एक ही बैल
कई लोग एक एक बैल भी पालते थे और यह प्रथा आज भी कहीं कहीं ज़ारी है. लेकिन मशीनी बैल ने जहाँ जमीन का कार्य आसान कर दिया है वहीँ वो बैलों के साथ अपनापन खो सा दिया है.
नामों से गूंजते थे गाँव
एक समय था जब पूरे गाँव में खड़ा काली,डोरी,मेहन्दू,बोलू,बादामी आदि नामों की आवाजें गूंजा करती थी लेकिन आज ये नाम कहीं गुम से हो गए हैं. क्या कभी ये बैलों की जोड़ी एक बार फिर से खेतों की शोभा बनेगी या नहीं कहा नहीं जा सकता.
अब करना होगा जमीन की तरफ रुख
लोगों ने अधिकतर जमीन आज के समय में खाली छोड़ रखी है लेकिन अगर लॉक डाउन और महामारी ऐसी ही चलती रही तो एक दिन आएगा जब सभी लोग अपनी खाली पड़ी जमीन की तरफ रुख करेंगे और उसमें फसल बोना शुरू करेंगे तथा बैलों के दिन भी वापिस आएंगे.