मंडी का ऐतिहासिक पड्डल मैदान चारों तरफ कंकरीट के भवन बनने से सिकुड़ता जा रहा है। शुरुआती दौर में कभी पड्डल मैदान का 800 मीटर का ट्रैक होता था। लेकिन मैदान को चारों तरफ कवर करने सहित कुछ कंक्रीट भवन बनने के कारण अब ट्रैक कम भी हो गया है।
क्योंकि मुख्य मैदान के जहां एक तरफ छोटे पड्डल में इंडोर स्टेडियम बनेगा, वहीं दूसरी कालेज मैदान में बिल्डिंग तैयार हो रही है। जिस कारण मैदान के चारों तरफ कंक्रीट के भवन बनने के कारण जहां मैदान की सुंदरता को कम होती जा रही है।
वहीं हरियाली भी विपरित असर पड़ रहा है। जोकि आने वाले समय के लिए एक चिंतनीय विषय है। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के दौरान छोटे पड्डल मैदान में सजने वाले मेला भी प्रभावित हो जाएगा।
लगातार बिगड़ती दशा को लेकर अब मंडी अधिकार मंच समेत अन्य संगठनों ने भी आवाज बुलंद कर दी है। मैदान की यथास्थिति में रखने को लेकर लोग प्रशासन के समक्ष भी गुहार लगा चुके हैं।
क्योंकि पड्डल मैदान एक ऐतिहासिक विरासत है और इसका अपना ही अलग महत्व है। बताया जाता है कि रियासत काल में पड्डल मैदान का मुख्य उद्देश्य अस्तबल के लिए किया था ।
साथ में मैदान में सैनिकों के प्रशिक्षण के लिए प्रयोग किया जाता था। अंग्रेजी शासन के बाद मैदान हिमाचल सरकार के अधीन हो गया। क्योंकि 1905 में जब भूकंप आया था तब मंडी शहर के लोगों ने पड्डल मैदान में इकट्ठा हो कर अपनी जान बचाई थी।
1962 में जब भारत चीन युद्ध चल रहा था तो उस समय पड्डल मैदान में ही भारतीय सेना को ठहराया गया था। उक्त मैदान हर स्थिति से निपटने के लिए बहुत बड़ा वरदान है। जिसकी संभाल करना बहुत जरुरी है।
लेकिन कुछ वर्षो से मैदान की चारों तरफ क्रंकीट व हरियाली कम होना चिंता का विषय है। लोगों की खेल गतिविधियों का केंद्र है और लोगों के सुबह घूमने के लिए उपयुक्त स्थान है।
मंडी शहर में अभी तक जो भी मैदान थे, वहां पर कंकरीट के भवन बनाकर उनके अस्तित्व को खत्म कर दिया गया है। चाहे कॉलेज का मैदान हो या फिर बाल स्कूल इन सभी को खत्म कर दिया गया है।
यदि पड्डल मे इंडोर स्टेडियम बन गया तो लोगों के खेलने- घूमने के लिए कोई भी उपयुक्त स्थान नहीं बचेगा।
मल्टी पर्पज है ऐतिहासिक पड्डल मैदान
ऐतिहासिक पड्डल मैदान खेलकूद स्पर्धा के लिए ही नहीं, बल्कि अंतरारष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव, चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्रचार स्थल, धार्मिक संस्थाओं के कार्यक्रम, कुछ स्कूलों के वार्षिक कार्यक्रम के लिए भी उपयोग होता है।
जिसके चलते पड्डल मैदान एक मल्टी पर्पज है। शिवरात्रि महोत्सव के बाद कुछ महीने पड्डल मैदान में खेलकूद स्पर्धा प्रभावित हो जाती है।
इंडोर स्टेडियम बनने पर पर्यावरण होगा प्रभावित
देव भूमि पर्यावरण रक्षक मंच के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सैणी का कहना है कि छोटे पड्डल मैदान में इंडोर स्टेडियम बनने के बाद इसकी हरियाली खत्म हो जाएगी। मैदान में शिवरात्रि महोत्सव के दौरान झूले सहित अन्य आयोजन भी प्रभावित हो जाएंगे। पर्यावरण बचाना चाहिए।
पड्डल में कई खिलाड़ियों ने दिखाया जौहर
ऐतिहासिक पड्डल मैदान पर पहला प्रथम श्रेणी मैच नवंबर 1986 में हुआ था। वहीं इस मैदान पर पहला लिस्ट ए मैच 1987-88 देवधर ट्रॉफ़ी में हुआ था।
इस मैदान पर हिमाचल प्रदेश ने पहली बार 1994-95 रणजी ट्रॉफ़ी एक दिवसीय प्रतियोगिता में खेला था। इतना ही नहीं पड्डल मैदान पर भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों के अलावा अन्य गेम्स के खिलाड़ी भी प्रतिभा दिखा चुके हैं।
देश-विदेश ऐसे कई खिलाड़ी व अधिकारी हैं। जिन्होंने पड्डल मैदान को देखकर खूब प्रशंसा की है। इस मैदान पर अभ्यास करने वाले खिलाड़ी खेल की दुनिया में अपना भविष्य बना चुके हैं।