मंडी : हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह जिला मंडी छोटी काशी के नाम से देश में प्रसिद्ध है। इसी जिला के ऊँची शिकारी धार में विद्यमान है माँ शिकारी देवी। शिकारी माता का यह पवित्र स्थान मंडी से 70 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर 11000 फीट की ऊंचाई पर है। ऐसी मान्यता है कि पांडव अपने अज्ञातवास के दौंरान यहाँ आये और माँ दुर्गा का आवाहन किया था। तब माता कन्या रूप में प्रकट हुई और पांडवों को कौरवों पर विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। तब पांडवों ने पत्थर की मूर्ति यहाँ स्थापित की और मंदिर का निर्माण शुरू किया परन्तु किसी कारणवश निर्माण पूरा होने से पहले ही पांडव यहाँ से चले गए। तभी से यह मंदिर बिना छत वाला मंदिर है। समय के साथ कई बार इसकी छत का काम शुरू किया गया लेकिन कोई भी इसे नहीं बना पाया। यह भारत का एक मात्र मंदिर है जहाँ माता के मंदिर में छत नहीं है।
मूर्तियों में नहीं जमती बर्फ
माँ का यह मंदिर तीन महीने तक बंद रहता है। इसका कारण यहाँ बर्फ का पड़ना है। ऊंचाई पर होने के कारण यहां सर्दियों में खूब बर्फ पड़ती है जिससे यहाँ आने के सारे रास् बंद हो जाते हैं। इस मंदिर में छत न होने पर भी यहां मूर्तियों पर बर्फ नहीं जमती है। बर्फ मूर्तियों पर गिर कर पिघल जाती है जबकि आस पास की जगह बर्फ से ढक जाती है। ये माता का रहस्य ही है जो मूर्तियों पर बर्फ क्या तिनका भी नहीं टिकता है। यहाँ हर साल 6-7 फीट बर्फ पड़ती है। शिकारी माता खुले आसमान के नीचे रहना पंसद करती है।
ऐसे हुआ माँ का नामकरण
यह मंदिर चारोंओर से जंगलों से गिरा हुआ है तथा इनमे कई तरह के जानवर रहते हैं। पांडव भी शिकार की तलाश में यहाँ आये थे। पांडवों ने यहाँ शिकार किया था इसलिए इसका नाम शिकार धार पड़ गया। शिकारी माता से प्रार्थना करते कि उनको शिकार मिल जाये ताकि वे खाली हाथ न लौटे। माता उनकी इच्छा पूरी भी करती थी। पांडवों से पहले मार्कंड़य ऋषि ने भी माँ दुर्गा की यहाँ उपासना की थी। इस मंदिर में चौसठ योगिनियों का वास है। माता की मूर्ति के आलावा यहाँ चामुंडा,कमरुनाग और परशुराम की मूर्तियाँ भी स्थापित है। ऐसी मान्यत है कि जब भी कमरुनाग रूठ जाते हैं वो अपने स्थान को छोड़ कर यहाँ छिप जाते हैं जब साजे के दिन गुर को पता चलता है तो वे उनको मनाने यहाँ आते हैं।
माँ के मंदिर के लिए रास्ता
शिकारी माता जाते हुए आपको बहुत ही सुन्दर दृश्य देखने को मिलेंगे। मंडी से 48km दूर कांडा नामक स्थान पर हमें पाण्डु शिला ( भीम शिला ) भी देखने को मिलेगी। इस शिला को आप जोर लगाकर हिला नहीं सकते है लेकिनअद्भुत बात है कि इसको आप एक अगुँली से धीरे से हिलाएं तो यह हिलती है। इसके बारे में कहा जाता है कि इस शिला को भीम ने यहाँ रखा था । रास्ते में आपको आगे चलकर एक स्थान पर गाड़ियों की नंबर प्लेट पड़ी हुई मिलेगी। ऐसा माना जाता है कि किसी की गाड़ी अगर ख़राब होती रहती है तो वे लोग यहाँ अपनी गाड़ी की नंबर प्लेट यहाँ चढ़ा देते हैं जिससे उनकी गाड़ियां ख़राब होना बंद हो जाती है।
जंजैहली से है 70 किमी दूर
जंजैहली गांव मंडी से 70 किलोमीटर दूर बहुत ही खूबसूरत देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ गांव है। इस गांव में सेबों के बगीचे देखने को मिलते हैं जो बहुत ही मनमोहक होते है .यहाँ आपको बहुत ही सस्ते में रहने के लिए स्थान भी मिल जायेंगे।
शिकारी देवी सेंचुरी
शिकारी देवी अभ्यारण्य हिमालय की खूबसूरती का प्रतीक है। यह खूबसूरत देवदार ,बान के वृक्षों और अन्य कई प्रकार के वृक्षों से घिरा हुआ सुन्दर अभ्यारण है। इसे 1962 में सरकार द्वारा वन्यजीव अभ्यारण्य का दर्जा दिया गया था। यहाँ कई प्रकार के जंगली जानवर और पशु पक्षी रहते हैं। गिलहरी,मस्क हिरन हिमालयन कला भालू , मोनाल , मोर, लंगूर आदि पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इस जंगल में कई विशिष्ट पेड़ -पौधे की प्रजातियां भी है। मंदिर से शिकारी देवी अभ्यारण्य का विहंग दृश्य होता है। 1974 में पूर्ण रूप से शिकारी देवी के इस घने जंगल को वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित किया गया है। तब से यहाँ शिकार करना मना है. प्रकृति से प्रेम करने और ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए यह स्थान जनत से कम नहीं।
गर्मियों में यात्रा के लिए बेहतर स्थान
शिकारी देवी पहुँचने के लिए एक ट्रैक करसोग से वाया बकरोट शिव देहरा होते हुए है।यहाँ से आप प्रकृति की गोद में बसे करसोग की वादियों का आनन्द लेते हुए जा सकते हैं। करसोग से जीप या कार द्वारा 22km का बहुत ही रोमांचक सफर है। बकरोट से हनुमान जी की मूर्ति के दर्शन करके आप अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं। दूसरा ट्रैक जन्जेली से शिकारी देवी जाता है। कुछ ट्रैकर मंडी से कमरुनाग होते हुए भी शिकारी देवी पहुँचते हैं। गर्मियों की छुटियों का आनन्द लेना हो और पवित्र धार्मिक स्थल के दर्शन करने हो तो शिकारी देवी की इस यात्रा में आपको बहुत ही कम खर्च करके आप हसीन वादियों का लुत्फ उठा सकते हैं। श्रद्धालुओं का ताँता गर्मियों में यहाँ खूब लगा रहता है। प्रकृति प्रेमियों के लिए तो यहाँ से जाने का मन ही नहीं होता है। शिकारी देवी जाते हुए राजग़ढ में आपको कई लोग श्रद्धालुओं के लिए लंगर भी लगाते हुए मिलेगें।
मंदिर की प्रमुख स्टेशनों से दूरी
दिल्ली से शिकारी : 523 किलोमीटर
चंडीगढ़ से शिकारी : 300 किलोमीटर
धर्मशाला से शिकारी : 240 किलोमीटर
शिमला से शिकारी : 180 किलोमीटर
कुल्लू से शिकारी : 155 किलोमीटर
मंडी से शिकारी : 80 किलोमीटर