देहरा के बनखंडी स्थित प्राचीन सिद्धपीठ बगलामुखी मंदिर में मां बगलामुखी का प्रकट दिवस धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया गया। मंदिर को रंग-बिरंगे फूलों के साथ सजाया गया है।
सुबह तड़के से ही भक्तों की लम्बी-लम्बी कतारें मां बगलामुखी के दर्शन करने के लिए लग गईं। मां बगलामुखी का प्रकट दिवस हर वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन देश-विदेश से श्रद्धालु मां बगलामुखी देवी के दर्शन कर मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर प्रबंधन द्वारा लंगर, भंडारा तथा जल पान की उचित व्यवस्था की गई है।
हवन करवाने का विशेष महत्व
मान्यता है कि मां के प्रकट दिवस वाले दिन मां बगलामुखी के मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है, जिससे कष्टों का निवारण होने के साथ-साथ शत्रु भय से भी मुक्ति मिलती है।
प्रकट दिवस के दिन माता बगलामुखी के दरबार में हवन-यज्ञ और पूजा पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और कष्टों से छुटकारा मिलता है।
मां बगलामुखी चिंता निवारक, संकट नाशिनी हैं। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है।
देवी बगलामुखी 10 महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं, यह स्तंभन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश हैंञ। शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए माता बगलामुखी की उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।
अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने की थी मंदिर की स्थापना
जिला कांगड़ा के देहरा से मात्र 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मां बगलामुखी मंदिर हजारों साल पुराना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बगलामुखी मंदिर की स्थापना द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान रात के समय पांडवों ने की थी।
कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान अर्जुन एवं भीम ने युद्ध में शक्ति प्राप्त करने तथा माता बगलामुखी की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष पूजा की थी।
कालांतर से ही बगलामुखी मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। इसके अतिरिक्त मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहां पर लोग माता के दर्शन के उपरांत अभिषेक करते हैं।
ऐसे पड़ा बगलामुखी नाम
मां बगलामुखी को 9 देवियों में 8वां स्थान प्राप्त है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी। ऐसी मान्यता है कि एक राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे जल में कोई मनुष्य या देवता न मार सके।
इसके बाद वह ब्रह्मा जी की पुस्तिका लेकर भाग रहा था तभी ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया। तब मां बगलामुखी ने राक्षस का पीछा किया तो राक्षस पानी में छिप गया।
इसके बाद माता ने बगुले का रूप धारण किया और जल के अंदर ही राक्षस का वध कर दिया तभी से मां का नाम बगलामुखी पड़ा। मां बगलामुखी को पीतांबरा देवी भी कहते हैं।
रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी होती हैं मां बगलामुखी की पूजा
त्रेतायुग में मां बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता है। त्रेतायुग में रावण ने विश्व पर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की थी।
इसके अलावा भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्ति के लिए मां बगलामुखी की आराधना की थी क्योंकि मां बगलामुखी को शत्रुनाशिनी देवी भी कहा जाता है।
इनकी पूजा विशेष रूप से शत्रु भय से मुक्ति एवं शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए की जाती है। मान्यता है की जो भी भक्त मां बगलामुखी के इस मंदिर में पूजा-अर्चना करवाता है, उनकी सभी प्रकार की व्याधियां दूर होती हैं।
पीला रंग मां का प्रिय रंग है। मंदिर की हर चीज पीले रंग की है। यहां तक कि मां को प्रसाद भी पीले रंग ही चढ़ाया जाता है।