हिमाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर अवैध कालोनियों काटने का काम जोरों पर चल रहा है। मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में इस कारोबार से जुड़े लोग विभागीय अधिकारियों से मिलकर सीधे कालोनी के रूप में भू-भाग को बेचकर इसकी अलग तरीके से रजिस्ट्रियां करवा रहे हैं।
ऐसा कर न तो टीसीपी के नियम लागू किए जा रहे हैं, न ही रेरा(रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) के नियमों को माना जा रहा है।
इससे सरकार को भी घाटा हो रहा है और जमीन खरीदने वालों को भी प्लॉट लेने पर मिलने वाली मूलभूत सुविधाएं मिल पा रही हैं। यह खेल गांव से लेकर शहरों तक बड़े स्तर पर चल रहा है।
हिमाचल में फोरलेन बनने के साथ ही भू-माफिया सक्रिय हो गया। यह भू-माफिया किसानों से उनकी कृषि योग्य जमीन खरीद रहा है और बाद में उसके प्लॉट बनाकर आगे लोगों को बेच रहा है।
बड़ी बात तो यह है कि इसमें रेरा और टीसीपी के नियमों को दरकिनार कर ऐसे प्लॉट बेचे जा रहे हैं, जिनमें सिवाय भूमि बेचने के कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। सड़क के दोनों ओर किसानों से जमीन खरीदकर उन पर अवैध कॉलोनियां काटकर प्लॉट बेचे जा रहे हैं।
इसे कागजों में अधिकारिक रूप से कॉलोनियां का नाम दिए बिना कई जगह हो भू-मालिकों से लेकर सीधी रजिस्ट्री जमीन खरीदने वाले के नाम पर हो रही है।
क्षेत्र के बुद्धिजीवी लोगोंं का कहना है कि यह सब कुछ प्रशासन की अनदेखी के कारण हो रहा है। विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से लंबे समय से बड़ी संख्या में कॉलोनियां काटकर प्लॉट बेचे जा रहे हैं।
इनमें सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। लोग अपनी मेहनत की जमा पूंजी यहां पर लगा रहे हैं, लेकिन इस तरह की कॉलोनियों में न तो डायवजऱ्न हैं और न ही दूसरी सुविधाएं।
कुछ कॉलोनाइर्ज के पास डायवजऱ्न तो है, लेकिन रेरा से अनुमति नही है। इसके बाद भी प्लॉट बेचे जा रहे हैं और सब कुछ खुलेआम चल रहा है।
खेतों में फसलों के स्थान पर कॉलोनियां काटी जा रही हैं। कॉलोनियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जिन खेतों में फसलें लहलहाती थीं, वहां अब कॉलोनियां नजर आ रही हैं।
बिजली-पानी के साथ अन्य मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलतीं
अधिकतर कॉलोनियों में न तो बिजली है और न ही पानी, डबल सडक़, नालियां, पार्क और मंदिर की सुविधा है। कॉलोनी का रास्ता मुख्य मार्ग से लिंक होना चाहिए, जिस जमीन पर कॉलोनी बननी है, वह विवादित नहीं होनी चाहिए।
जिसके नाम पर लाइसेंस जारी होता है, उसके नाम पर कम से कम 25 फीसदी जमीन का हिस्सा होना चाहिए। सीवरेज, पानी का प्रबंध, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट आदि होना चाहिए।
कॉलोनी के लिए सभी 15 विभागों से एनओसी जरूर मिली हो। इसमें पीडब्यूडी, वन विभाग, बिजली विभाग आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं।
टाउन कंट्री प्लानर को सीएलयू (चेंज ऑफ लैंड यूज़) के लिए आवेदन दिया हो। इससे पहले डीटीपी द्वारा कॉलोनी काटे जाने वाली जगह का निरीक्षण किया गया हो।
मास्टर प्लान की उड़ रही धज्जियां
भू-कारोबारी किसानों से एक साथ कृषि भूमि खरीद लेते हैं। इसके बाद बिना डायवजऱ्न और अन्य जरूरी अनुमतियां लिए बगैर प्लाट काटकर उन्हें बेचने लगते हैं।
इस तरह से मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में नियमों को दरकिनार किया जा रहा है। इससे जहां लोगों को सही प्लॉट नहीं मिल पा रहे हैं, तो वहीं यह कारोबारी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
बेतरतीब नियमों के विरुद्ध काटी जा रही कॉलोनियों के चलते मास्टर प्लान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।