गुम्मा! अगर आप हिमाचल में रहते हैं, तो यह नाम सुनते ही आपके जहन में नमक आता होगा। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के जोगिन्दरनगर कस्बे से मंडी-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर गुम्मा गांव स्थित है।
औषधीय गुणों के लिए मशहूर
गुम्मा गांव कभी उसी गुम्मा (चट्टानी) नमक के कारण पूरे प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश भर में भी प्रसिद्ध था। गुम्मा नमक अपने स्वाद व औषधीय गुणों के चलते पूरे देश भर में लोगों को आकर्षित करता रहा है।
भले ही आज गुम्मा नमक न मिलता हो, लेकिन पानी के रूप में आज भी लोग गुम्मा नमक का स्वाद चख रहे हैं। आज हम आपकों इसी नमक की वह कहानी बताएंगे, जिसने कई राजाओं में जंग करवा दी थी, जिसे लेने के लिए लोग देश के कौन कोने से आते थे।
जबरदस्त है इतिहास
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के गुम्मा व द्रंग ऐसे दो स्थान हैं, जहां पर चट्टानी नमक पाया जाता है। प्राचीन समय से ही लोग इसे गुम्मा नमक के नाम से जानते हैं।
अगर इतिहास की बात करें, तो मंडी जिला का गुम्मा क्षेत्र इस चट्टानी नमक के कारण रियासतकालीन राजाओं के मध्य एक संघर्ष का कारण भी रहा है।
मंडी रियासत के अधीन रही यह खदान
समय-समय पर विभिन्न रियासतों ने इस प्राकृतिक खनिज संपदा को अपने अधीन करने के लिए कई युद्ध भी लड़े, लेकिन इतिहास के पन्ने बताते हैं कि गुम्मा व द्रंग नमक की यह खदानें अधिकतर समय मंडी रियासत के अधीन ही रही हैं।
आजादी के बाद इन नमक खदानों को भारत सरकार ने अपने अधीन ले लिया और वर्ष 1963 में इन खदानों को मैसर्ज हिंदुस्तान साल्ट्स लिमिटेड को हस्तांतरित कर नमक का उत्पादन शुरू किया।
बंद हुआ नमक उत्पादन
किवदंती के अनुसार नमक उत्पादन के कई वर्षों बाद गुम्मा की पहाड़ियों में एक बड़ा भूस्खलन हुआ, जिसके बाद यहां से नमक को निकालना मुश्किल हो गया।
वर्तमान में गुम्मा में चट्टानी नमक, तो नहीं निकाला जाता है, लेकिन यहां से लगभग 35 किलोमीटर दूर द्रंग खदान से आज भी यह नमक निकाला जा रहा है।
रसायनिक विश्लेषण
रसायनिक विश्लेषणों में भी गुम्मा नमक उत्तम पाया गया है। इन क्षेत्रों में विस्तृत भू-वैज्ञानिक कार्य व ड्रिलिंग भी की गई है।
ड्रिलिंग डाटा से पता चलता है कि मामूली गैर उत्पादक तत्वों को छोड़कर पूरा क्षेत्र नमक से बना है। साथ ही किए गए रसायनिक विश्लेषणों से भी पता चलता है कि औसत नमक सामग्री 70 प्रतिशत से अधिक है और गहराई के साथ इसमें कोई नियमित परिवर्तन नहीं होता है।
इसके अलावा पोटाशियम व मैग्नीशियम की मात्रा भी इसमें पाई जाती है, इसमें अघुलनशील अशुद्धियां केवल 21 प्रतिशत हैं। इस तरह प्रदेश का गुम्मा नमक रासायनिक विश्लेषणों में भी उत्तम पाया गया है।
आज भी चख रहे हैं स्वाद
स्थानीय लोग बताते हैं कि प्राचीन समय से ही गद्दी समुदाय के लोग प्रतिवर्ष अपनी भेड़-बकरियों के साथ गुम्मा से गुजरते थे और पूरे वर्ष भर के लिए नमक यहां से लेकर जाते थे।
इस नमक को न केवल वे स्वयं इस्तेमाल करते थे, बल्कि मवेशियों को भी खिलाया जाता था। इसके अलावा प्रदेश के दूसरे स्थानों से भी लोग गुम्मा नमक लेने के लिए यहां पहुंचते थे।
संगीत में भी है इस नमक का जिक्र
गुम्मा नमक का जिक्र आज भी प्रदेश की लोक कथाओं, संस्कृति व संगीत में सुनने को मिलता है। जहां तक गुम्मा नमक खदान की बात करें, तो यहां पर नमक चट्टानी तौर पर उपलब्ध नहीं है, लेकिन पानी के तौर पर आज भी गुम्मा नमक उपलब्ध है।
आज भी चख रहे लोग स्वाद
बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के साथ-साथ हिमाचल भ्रमण आने वाले पर्यटक इसे बोतलों व बरतनों में भरकर ले जाते हैं। गले दर्द में भी यह नमक रामबाण का काम करता है।
दाल-सब्जी में भी होता है प्रयोग
जानवरों के साथ -साथ दाल व सब्जी में भी इस नमक का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार इस ऐतिहासिक गुम्मा नमक का स्वाद आज भी लोग चख रहे हैं।