कांगड़ा चाय की बिक्री के लिए अब यूरोप के दरवाजे खुल सकते हैं। शीघ्र ही कांगड़ा चाय को यूरोपीय संघ के जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) मिलने के आसार हैं। टैग मिलने के साथ ही कांगड़ा चाय की चर्चा यूरोप के देशों तक सुनाई देगी। इससे पूर्व जीआई टैग को लेकर भारत के बासमती चावल भी चर्चा में रहे थे।
हालांकि पिछले साल जनवरी में भारत की जगह पाकिस्तान को बासमती चावल में यूरोपीय संघ का जीआई टैग मिल गया था। इसके बाद भारत के चावल की बिक्री प्रभावित होने की संभावना जताई गई थी और उसके बाद से लगातार भारत भी बासमती समेत अन्य गुणवत्ता पूर्ण उत्पादों को यूरोपीय संघ का जीआई टैग दिलाने में प्रयासरत है।
ताजा घटनाक्रम की बात करें, तो कांगड़ा चाय की चर्चा इस वक्त भारत समेत पूरे यूरोपीय संघ में हो रही है। कांगड़ा चाय को 2005 में भारत में जीआई टैग हासिल हो चुका है। इसके बाद चाय की गुणवत्ता में निरंतर सुधार लाने के प्रयास किए गए हैं।
चार विभागों- टी बोर्ड ऑफ इंडिया के क्षेत्रीय कार्यालय पालमपुर, राज्य के सहकारी और कृषि विभाग, सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर और चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर कांगड़ा चाय की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
वित्तीय वर्ष 2021-22 में चाय उत्पादकों को एक लाख से अधिक पौधे प्रदान किए गए और 5.6 हेक्टेयर नए क्षेत्र में चाय की पौध लगाई गई है। विभाग चाय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सामान्य वर्ग के किसानों को दो रुपए प्रति पौधा तथा अनुसूचित जाति वर्ग के किसानों को एक रुपए प्रति पौधा उनके घर द्वार पर उपलब्ध करवा रहा है।
कृषि विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि विभाग भारतीय टी बोर्ड और चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय के चाय विभाग के वैज्ञानिकों के संयुक्त तत्त्वावधान में जागरूकता एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। इससे अनुसंधान संस्थानों की नई तकनीकों का प्रशिक्षण प्रदान कर चाय की खेती को बढ़ावा दिया जा सके।