हिमाचल में नियमित सेवालाभ के इंतजार में 140 टीजीटी रिटायर हो गए हैं और अभी 2008 में नियुक्त किए गए अन्य टीजीटी भी इीसी कतार में हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2008 में हिमाचल प्रदेश में 1473 टीजीटी शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी। वर्ष 1973 की नियमावली के अधीन नियुक्त इन शिक्षकों को रेगुलर किया जाना था, मगर शिक्षा विभाग ने इनकी नियुक्ति अनुबंध पर कर डाली।
उस समय शिक्षा विभाग में भर्ती पदोन्नति नियमों में अनुबंध प्रणाली की व्यवस्था नहीं की गई थी, लेकिन बिना अनुबंध नियमावली ही इन टीजीटी शिक्षकों को अनुबंध के अधीन नियुक्ति दी गई । 12 अक्तूबर, 2009 को शिक्षा विभाग ने भर्ती पदोन्नति नियमावली में अनुबंध नियुक्तियों का प्रावधान पहली बार किया था, मगर वर्ष 2008 में जिन शिक्षकों को नियुक्ति नियमित आधार पर मिलनी थी, उनको भी अनुबंध के दायरे में लाया गया। राजकीय टीजीटी कला संघ प्रदेश महासचिव ने बताया कि सेवा नियमानुसार किसी भी कर्मचारी की नियुक्ति पर वही नियम लागू होते हैं, जो उस पद की भर्ती के विज्ञापन के समय प्रचलित हों।
चार अक्तूबर, 2019 कोर्ट का निर्णय आया, जिसमें इन 1473 टीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति तिथि से नियमित सेवा लाभ देने के आदेश प्रदेश हाई कोर्ट ने दिए, मगर 13 साल से लाभ मांग रहे इन शिक्षकों को लाभ देने की बजाय हाई कोर्ट में रिव्यू याचिका सात अगस्त, 2021 दायर कर दी, जिसके चलते कोर्ट के 10 साल पुराने निर्णय का लाभ इन शिक्षकों को नहीं मिल रहा और 140 टीजीटी इस इंतजार में सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
संघ ने प्रदेश सरकार से अपील की है कि इस रिव्यू याचिका का निर्णय यदि इन शिक्षकों के पक्ष में आता है, तो इन शिक्षकों को समस्त देय लाभ प्रदान किए जाएं और सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल न की जाए। अन्यथा शेष शिक्षक भी नियमित सेवालाभ की प्रतीक्षा करते करते सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
पांच जुलाई, 2002 को शुरू की गई टीजीटी भर्ती का लिखित टेस्ट अक्तूबर, 2002 में हुआ। 11 दिसंबर, 2002 को भर्ती परिणाम घोषित हुआ, मगर आचार संहिता लगने के कारण नियुक्ति रुकी, जो सत्ता बदलने पर न हो सकी । भर्तियों की विजिलेंस जांच हुई, मगर टीजीटी कला भर्ती बेदाग साबित हुई।
2009 में टीजीटी मेडिकल, नॉन-मेडिकल को नियुक्ति अनुबंध पर मिली व हाई कोर्ट के निर्णय पर 224 टीजीटी कला को 2011-12 में अनुबंध पर नियुक्ति मिली। इन शिक्षकों को भी नियमित नियुक्ति देय थी, मगर अनुबंध थोपने से वरिष्ठता, पदोन्नति व वित्तीय नुकसान हुआ। इनमें से कई शिक्षक सेवानिवृत्ति की दहलीज पर हैं, मगर देय लाभ नहीं मिल रहे।