कुल्लू: भारत-चीन युद्ध के बाद जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू मनाली की वादियों में सुकून की तलाश में आए तो उस समय दुनिया भर की निगाहें भारत की ओर थीं. इसलिए पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ मीडिया भी मनाली की वादियों में आया. यही वह समय था जब मनाली का प्राकृतिक सौंदर्य दुनिया की नजरों में आया. धीरे-धीरे विदेशी सैलानी मनाली की ओर आकर्षित होने लगे. देखते ही देखते मनाली पश्चिमी हिमालय का टूरिस्ट हब बन गया. बेशक मनाली आज भीड़ भरा है लेकिन आज भी मनाली की वादियां पर्यटकों को लुभाने में सफल दिख रही हैं.
मनाली के साथ-साथ मणिकर्ण का कसोल हो या फिर बंजार घाटी की तीर्थन घाटी, दोनों पड़ाव प्रकृति प्रेमियों, एडवैंचर प्रेमियों को खूब भा रहे हैं. भले ही दोनों वादियां प्रदेश सरकार के पर्यटन मानचित्र पर दर्जा हासिल नहीं कर पाई हैं लेकिन अति वशिष्ठ लोगों की यहां आवाजाही इस स्थान को नई पहचान दे रही है.
दुनिया का श्रेष्ठतम एवं यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शुमार ग्रेट हिमालयन नैशनल पार्क का प्रवेश द्वार भी तीर्थन घाटी के गुशैणी में है. इस पार्क की विशेषता यह है कि यहां दुनिया के विलुप्त होते वन्य पशु, पक्षी, वन, वनस्पति इसे वशिष्ठता प्रदान करते हैं. विलुप्तता के कगार पर खड़ा सुंदरतम पक्षी जुजुराणा भी भारत के इस पार्क में पाया जाता है. इसके अलावा घोरल, काला भालू, भूरा भालू, बर्फानी चीता व कस्तूरी मृग जैसे कई दुर्लभतम पशु भी इस क्षेत्र में पाए जाते हैं. प्रकृति प्रेमियों और दुनिया भर के अनुसंधानकर्त्ताओं के लिए यह बेहतरीन प्रयोगशाला साबित हो रहा है.
यहां की साफ-सुधरी आबोहवा, प्रदूषण मुक्त वातावरण, एकांत व शांत माहौल यहां की खासियत है. घाटी में ट्रैकिंग जैसी साहसिक गतिविधियों के लिए दुनिया भर के लोग यहां पहुंच रहे हैं. कुछ नई सड़कों के निर्माण से घाटी के कई गांवों तक अब पर्यटक पहुंच रहे हैं और यहां की सांस्कृतिक विरासत से रू-ब-रू हो रहे हैं. अभी तक तीर्थन घाटी के पर्यटन को सरकार रूप से सुदृढ़ नहीं किया गया है लेकिन घाटी के कई युवा आज पर्यटन के नए अध्याय का सूत्रपात कर रहे हैं. अब वह दिन दूर नहीं जब प्रकृति सुंदरता से भरी तीर्थन घाटी दुनिया के बेहतरीन पर्यटन स्थलों में शुमार होगी.
स्रोत : पंजाब केसरी