हिमाचल में शनिवार एनपीएस कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम लागू होने जा रही है। इसी माह के पहले या दूसरे सप्ताह में ओल्ड पेंशन और जीपीएफ के लिए नए रूल्स नोटिफाई हो रहे हैं। इनके लागू होते ही 1.36 लाख एनपीएस कर्मचारियों को अब डबल पेंशन मिलेगी।
मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने इसकी पुष्टि की है। सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने ओल्ड पेंशन को लागू करने के लिए जो फार्मूला तय किया है, उसके कारण ऐसा हो रहा है।
क्या है एनपीएस?
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (National Pension System (NPS)) भारत सरकार द्वारा शुरू की गयी एक पेंशन-योजना (रिटायरमेंट सेविंग स्कीम) है। राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) 1 जनवरी 2004 को सभी नागरिकों को सेवानिवृत्ति आय प्रदान करने के उद्देश्य से आरंभ की गई थी जिसमें कर्मचारी और भारत सरकार दोनों सह-निवेश करते हैं।
पेंशन की योजना कर्मचारी को वृद्धावस्था के दौरान वित्तीय सुरक्षा और स्थायित्व प्रदान करती है, जब आय का कोई नियमित स्रोत नहीं होता है। इस योजना द्वारा सुनिश्चित किया जाता है कि लोगों के पास प्रतिष्ठापूर्ण जीवन जीने और बढ़ती उम्र में अपना जीवन स्तर अच्छा बनाए रखने की सुविधा हो।
हिमाचल प्रदेश कैबिनेट ने लिया यह फैसला
कैबिनेट में हुए फैसले के बाद वित्त विभाग ने ओल्ड पेंशन रूल्स का ड्राफ्ट विधि विभाग में भेजा है। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि एनपीएस कर्मचारी को रिटायरमेंट पर मिलने वाली एकमुश्त राशि का अधिकतम हिस्सा राज्य सरकार को जमा करवाना होगा। कर्मचारी को एनपीएस नियमों के तहत कुल मिलने वाले पैसे का यह 54 फीसदी बन रहा है।
यह पैसा एनपीएस में राज्य सरकार की कंट्रीब्यूशन का है। यह राशि खाते में आने के बाद राज्य सरकार एनपीएस कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन लागू कर देगी और भविष्य में उसे कोई धनराशि सरेंडर करने की जरूरत नहीं होगी।
इसके बाद एनपीएस की शेष बची राशि की पेंशन कर्मचारी को दिल्ली से पीएफआरडीए देगा और राज्य सरकार अपने हिस्से की पूरी ओल्ड पेंशन देगी।
इस तरह हर एनपीएस कर्मचारी पर डबल पेंशन का फार्मूला लग रहा है। जहां तक कॉरपस फंड की बात है, तो हिमाचल सरकार ओल्ड पेंशन के लिए अलग से कोई फंड क्रिएट नहीं कर रही है। यानी छत्तीसगढ़ फार्मूले को राज्य में पूरी तरह लागू नहीं किया जा रहा है।
इसके पीछे राज्य सरकार की वित्तीय मजबूरी है। छत्तीसगढ़, चूंकि रिवेन्यू सरप्लस स्टेट है, इसलिए वहां यह करना संभव है। हिमाचल में राज्य सरकार ट्रेजरी, वेज एंड मीन्स और ओवरड्राफ्ट का इस्तेमाल काम चलाने के लिए करती है।
यानी साल में एक या दो बार ऐसा वक्त भी आता है, जब ट्रेजरी में पैसे नहीं होते, फिर भी बैंक वेतन या पेंशन इत्यादि प्रतिबंध देनदारियों का भुगतान करता है।
राज्य को अपना कोषागार चलाने के लिए लोन पर निर्भर रहना पड़ता है। लोन महंगी ब्याज दर पर मिल रहा है और यदि राज्य सरकार कॉर्पस फंड बनाती है, तो इस फंड पर ब्याज लोन से कम मिलेगा।
इस स्थिति में भी अलग फंड क्रिएट करना समझदारी नहीं होगी। राज्य सरकार एनपीएस कंट्रीब्यूशन के तौर पर सालाना करीब 970 करोड़ दे रही है। फिलहाल इसी से ओल्ड पेंशन का भुगतान होगा।
इसका अर्थ यह हुआ कि ओल्ड पेंशन को राज्य सरकार पूरी तरह ट्रेजरी के भरोसे ही चलाना चाह रही है। इसके लिए विकल्प किस तरह लिया जाएगा और ओल्ड पेंशन का फॉर्मेट क्या होगा? यह रूल्स नोटिफाई होने के बाद ही पता चलेगा।
मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने बताया कि जिन भी राज्यों ने ओल्ड पेंशन को लागू किया है, वहां डबल पेंशन फॉर्मेट ही बन रहा है। इसकी वजह यह है कि भारत सरकार राज्यों को पैसा लौटाने को तैयार नहीं है और संबंधित कर्मचारी के खाते में पैसा वापस आ रहा है।
यदि कंट्रीब्यूशन बीच में रोक भी दी जाए, तो जितना पैसा जा चुका होगा, उसकी मासिक पेंशन एनपीएस ट्रस्ट बना रहा है। हिमाचल में भी डबल पेंशन फार्मूला ही लगेगा।
उन्होंने बताया कि ओल्ड पेंशन की नोटिफिकेशन जल्द हो जाएगी। वैसे भी सैलरी और पेंशन के बिल 15 तारीख के बाद ही बनते हैं।