काँगड़ा : हिमाचल प्रदेश की चाय ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कांगड़ा चाय को यूरोपियन जीआई टैग प्रदान किया गया है। उच्च स्तर के मानकों पर खरा उतरने वाले उत्पादों को ही यूरोपियन जीआई टैग दिया जाता है।
कांगड़ा चाय इस समय काफी कम जगह पर उगाई जा रही है और इसका उत्पादन भी अपेक्षाकृत कम है। बावजूद इसके कांगड़ा चाय की उच्च गुणवत्ता ने प्रदेश ही नहीं देश के लिए भी यह बड़ा सम्मान प्राप्त किया है।
जानकारों के अनुसार यूरोपियन टैग अभी देश में कम ही उत्पादों को मिला है। ऐसे में कांगड़ा चाय का इस सूची में शामिल होना कांगड़ा चाय व चाय उत्पादकों के लिए काफी प्रोत्साहजनक है।
कांगड़ा चाय की अपनी खास महक और जायका है और कांगड़ा टी को जीआई टैग 2005 में मिला था। प्रदेश में इस समय लगभग 2400 हेक्टेयर रकबे में चाय बागान हैं।
आज से चार दशक पूर्व करीब तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्र में चाय बागान थे। 1990 से लेकर 2002 तक कांगड़ा चाय उद्योग बुलंदियों पर था और हर साल यहां पर दस लाख किलो से अधिक चाय का उत्पादन हो रहा था।
चाय उत्पादकों के प्रयासों से 1998-99 में चाय उत्पादन के सभी रिकार्ड टूट गए और उस साल 17,11,242 किलो चाय का उत्पादन हुआ।
विभिन्न कारणें से यह ट्रेंड जारी नहीं रह सका और पिछले कुछ सालों में तो चाय उत्पादन का आंकड़ा दस लाख किलो से कम ही रहा है।
दूसरे प्रदेशों के मुकाबले में प्रदेश के चाय बागानों का आकार काफी कम है। दूसरे प्रदेशों में बड़े चाय बागान मालिकों को सबसे बड़ा लाभ यह रहता है कि उनका यहां सही दाम में लेबर पूरा साल उपलब्ध रहती है।
छोटे चाय बागान होने से पूरा साल लेबर नहीं रख सकते और कुछ समय के लिए आने वाली लेबर काफी अधिक दाम वसूलती है।