शुरू हुई राजा छतरी जाहपीर की गूगा गाथा

हिमाचल में कई पर्व ऐसे हैं जो हमारी संस्कृति के परिचायक हैं. इन पर्वों से हमारी पुरानी संस्कृति की सुगंध आती है. शायद ही कोई महीना ऐसा होगा जब कोई पर्व या त्यौहार न हो. यहाँ हर पर्व और त्यौहार का अपना विशेष महत्व है.

आज से शुरू होती है गूगा गाथा

रक्षाबंधन पर्व के साथ ही हिमाचल में घर- घर गूगा गाथा सुनाने का क्रम भी शुरू हो जाता है. मंडी जिला में भी रक्षाबंधन के दिन से घर-घर जाकर गूगा मंडली के सदस्यों द्वारा जाकर गूगा भगवान का गुणगान शुरू हो जाता है. गूगा मंडली के सदस्यों द्वारा नगें पांव हाथों में छत्र लेकर घर- घर घूम कर कथाएं सुनाई जाती है. 4 या 5 लोगों की टोली गूगा गाथा सुनाने का काम करती है. रक्षाबंधन से जन्माष्टमी के दिन तक जाहपीर के मंडलीदार गूगा जाहपीर के साथ गाँव में घर-घर जाकर लोगों के सुखमयी जीवन की कामना करते हैं.

 

कौन थे गूगा जाहपीर ?

गूगा जाहपीर गढ़मरू देश के राजा जयोर व रानी वाछ्ला के पुत्र थे. गूगा जाहपीर को राजा छतरी जाहपीर के नाम से भी जाना जाता है . मंडलीदार गाँव में घर-घर जाकर राजा छतरी जाहपीर की गाथा का गुणगान करते हैं. रानी वाछल ने गुरू गोरख नाथ की पुत्र प्राप्ति के लिए 12 साल तक सेवा की थी. रानी वाछ्ला ने पुत्र प्राप्ति के लिए जीभ से चौका, बालों से झाड़ू, 12 साल तक सुहागिन होते हुए भी सफेद कपड़े पहन कर गुरू गोरख नाथ की सेवा की थी जिससे गुरू गोरख नाथ ने भगवान भोलेनाथ से फल माग कर रानी वाछ्ला को पुत्र बधाई दी थी.

गूगा कथा सुनने से होते हैं दुःख दूर

पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन से आगामी सात दिनों तक गूगा की कथाएं सुनने से सुख मिलता है और दुख व कष्ट दूर होते हैं. गूगा की इस कथा के गुणगान का यह क्रम जन्माष्टमी के अगले दिन नवमी को समाप्त होता है.

मिल जुल कर मनाएं सभी पर्व

आधुनिकता के युग में लोग आज ऐसे पर्व और त्यौहारों को भूलने लगे हैं जोकि हमारी संस्कृति के लिए घातक है. आज जरूरत है ऐसी धरोहर को कायम रखने की. आने वाली पीढ़ियों को सभी पर्वों और त्यौहारों को खूब मिल -जुल कर मनाना चाहिए ताकि हम उनके बारे में जान सकें और अपनी संस्कृति को भी जिन्दा रख सकें.

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