हिमाचल प्रदेश में कांट्रैक्ट सर्विस को पेंशन के लिए गिना जाएगा। हिमाचल हाई कोर्ट के इस फैसले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी है। स्वास्थ्य विभाग के रिटायर डाक्टर ने यह मामला हाई कोर्ट में किया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। सुप्रीम कोर्ट में यह स्पेशल लीव पिटिशन खारिज हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश हृषीकेश राय और न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। स्वास्थ्य विभाग से 31 दिसंबर, 2020 को रिटायर हुए डाक्टर उमेश कुमार ने उनके अनुबंध सेवा को पेंशन के लिए न गिने जाने के खिलाफ हाई कोर्ट में केस किया था।
हाई कोर्ट ने 19 अप्रैल, 2023 को फैसला दिया था कि अनुबंध और रेगुलर डाक्टर के काम में क्योंकि कोई अंतर नहीं था, इसलिए अनुबंध की अवधि को भी पेंशन बेनिफिट के लिए काउंट किया जाए, जबकि राज्य सरकार ने कहा था कि कांट्रैक्चुअल सर्विस पेंशन के लिए नहीं गिनी जा सकती।
हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के तर्कों को न मानते हुए सीसीएस पेंशन रूल्स 1972 के तहत पेंशन देने के लिए अनुबंध सेवा को भी क्वालीफाइंग सर्विस में लेने के आदेश दिए थे।
स्वास्थ्य विभाग इस फैसले के खिलाफ स्पेशल लीव पिटिशन में सुप्रीम कोर्ट गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले में बताए गए कारण सही हैं, इसलिए 19 अप्रैल, 2023 को सुनाया गया फैसला जारी रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी को भी डिसमिस कर दिया। गौरतलब है कि इसी तरह के कई ऑर्डर हिमाचल हाई कोर्ट से अन्य कुछ विभागों में पहले भी आ चुके हैं, जो अभी लागू नहीं हुए हैं।
राज्य के स्वास्थ्य विभाग में तैनात नर्सेज को वर्ष 2003 से 2012 तक की अन्र्ड लीव खाते में क्रेडिट हो जाएंगी। हालांकि इनका वित्तीय लाभ नहीं मिलेगा।
हिमाचल हाई कोर्ट के फैसले के आधार पर स्वास्थ्य सचिव ने इस बारे में शनिवार को ही आर्डर किए हैं। पार्वती शर्मा बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश के मामले में हाई कोर्ट ने दो दिन में आदेश करने को कहा था, नहीं तो अवमानना का मामला चलना था।
यह वही केस है, जिसमें कैबिनेट मेमोरैंडम और कैबिनेट के फैसले से कोर्ट भडक़ गया था। स्वास्थ्य सचिव ने हाई कोर्ट के सामने पेश होकर दो दिन के भीतर ऑर्डर करने की बात मान ली थी।