हिमाचली परोणा

एक बारी कुसकी रे घरा इक परोणा आया. परोणा भी एड़ा जे भई एक बारी डटी जाओ ता जाने रा नाम नी लेंदा था.

ता से एथी भी डटी गेया. एकदिन होया, हफ्ता होया, 2 हफ्ते होई गये पर परोणा नी हिल्लो.

गल्ला एड़ी जियां घरा रा मालक से ए हो.

“अज बडियाँ बणायां”, “हुण चा देई देया”, “भ्यागा हलुआ बणाइ देया”.. तिसरी फरमाइशा पूरी केरदे-केरदे घरा वाले दुखी होई गये।

महीना होणयो आई गया पर परोणा नी गयाजी. घरा वाल्या सोच्या हुण ता कुछ करना ही पौणा.

मतलब तिसारा इशारा परोंणे भखा जो था. परोणे सोच्या हुण मेरा जाणा ए ठीक रहणा. तिन्ने अपणा समान चुक्कया कन्ने घरा गे निकली गया. लाड़ा-लाड़ी बड़े भारी खुश होए. चलो जी छुटकारा मिल्या. देख्या क्या ड्रामा करना पया.लाड़ा बोलो,

“तू भी बड़ी भारी ड्रामे बाज़ हई. हाँऊ ता तिज्जो झूठा-मूठा री मारणा लगीरा था पर तू ता एड़ी चिल्लायी जियां सच्चे मारी छड्डी हुंगी. ”“ हाँऊ भी ता झूठा-मूठा री लगिरी थी चिल्लाना, मिंजो नी लगी-लूगी कोई भी.”, लाड़ी बोली.

एतने मंझ से परोणा भी कुथकी भखा गे निकली आया कन्ने बोल्या,

“हाँऊ भी ता झूठा-मूठा रा था गयिरा. एह था दे हाँऊ पछोड़े पीछे लुखिरा

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