मोरपंख एक साधारण प्राकृतिक सौंदर्य नहीं, बल्कि यह दिव्यता और ऊर्जा का अद्भुत संगम है। भारतीय संस्कृति में इसका स्थान अलौकिक माना गया है।
श्रीकृष्ण जब अपने मुकुट में मोरपंख धारण करते हैं, तो वह केवल श्रृंगार नहीं होता, वह ब्रह्मांड के संतुलन, सौंदर्य और सात्विकता का प्रतीक बन जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि मोरपंख में सभी देवी-देवताओं और नौ ग्रहों का वास होता है। यही कारण है कि ज्योतिषाचार्य इसे सर्वग्रह शांतिदायक उपायों में सर्वोत्तम मानते हैं। मोरपंख को घर, मंदिर और पूजन स्थलों में शुभ प्रतीक के रूप में रखा जाता है
मोरपंख और श्रीकृष्ण का पवित्र संबंध
मोरपंख श्रीकृष्ण की लीला का अभिन्न हिस्सा है। जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया, तब वर्षा में भीगते मोरों ने नृत्य किया था। उसी समय प्रभु ने एक मोर के पंख को सप्रेम अपने मुकुट में सजाया, तब से यह उनका शाश्वत अलंकार बन गया। यह प्रकृति और परमात्मा के एकत्व का संकेत है।
मोरपंख की रंगत- नीला, हरा, सुनहरा और बैंगनी- जीवन के चार तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है : जल, पृथ्वी, अग्नि और आकाश। यही कारण है कि इसे संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का वाहक कहा गया है।
मोरपंख का ज्योतिषीय महत्त्व
ज्योतिष में मोरपंख को राहु-केतु और कालसर्प दोष को शांत करने वाला माना गया है। यदि किसी की कुंडली में राहु-केतु पीड़ा दे रहे हों, तो सोमवार की रात्रि में सात मोरपंख तकिए के अंदर रखकर सोना चाहिए।
साथ ही पश्चिम दिशा की दीवार पर 11 मोरपंखों से बना पंखा लगाने से नकारात्मक ग्रहों का प्रभाव कम होने लगता है। मोरपंख शत्रु नाशक भी माना गया है। य
दि कोई व्यक्ति दुर्भावना रखता हो, तो मंगलवार या शनिवार की रात मोरपंख पर हनुमान जी के सिंदूर से उसका नाम लिखकर मंदिर में रख देना चाहिए और अगले दिन बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। इससे शत्रु की भावना बदल जाती है और वैर मिट जाता है।
आयुर्वेद में मोरपंख की उपयोगिता
आयुर्वेद में मोरपंख को औषधीय रूप से अत्यंत प्रभावी माना गया है। इसका उपयोग दमा, लकवा, तपेदिक, बांझपन और नजला जैसे रोगों में किया जाता है। पंखों में मौजूद प्राकृतिक तत्त्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
घर में मोरपंख रखने के लाभ
मोरपंख घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यदि किसी घर में अकस्मात परेशानियां या मानसिक तनाव हो, तो शयनकक्ष के अग्निकोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) में मोरपंख रखने से वातावरण में शांति आती है।
धन और वैभव की प्राप्ति के लिए मंदिर में श्रीराधा-कृष्ण के मुकुट में मोरपंख अर्पित कर 40वें दिन उसे तिजोरी या लॉकर में रखना अत्यंत शुभ माना गया है। यह प्रयोग न केवल धनवृद्धि करता है, बल्कि रुके हुए कार्यों को भी गति देता है।
बच्चों के लिए मोरपंख की रक्षा
यदि कोई बच्चा अत्यधिक जिद्दी या डरपोक हो, तो उसके बिस्तर के पास मोरपंख रखना या सीलिंग फैन पर लगाना शुभ माना गया है। नवजात शिशु के सिरहाने चांदी के तावीज में मोरपंख रखने से नजर दोष, भय और असुरक्षा से रक्षा होती है।
निष्कर्ष
मोरपंख केवल एक सुंदर प्राकृतिक उपहार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। यह भक्ति, सौंदर्य और संतुलन- तीनों का संगम है।
श्रीकृष्ण के मुकुट का यह पवित्र प्रतीक हमें याद दिलाता है कि जीवन में रंग तभी खिलते हैं जब मन में श्रद्धा, संयम और प्रेम का वास हो।
मोरपंख धारण करना या घर में रखना दरअसल सत्कर्मों, सकारात्मक सोच और ईश्वर में विश्वास का प्रतीक है। यही वह शक्ति है जो जीवन के अमंगलों को हरकर हमारे भीतर मंगलमय भाव का संचार करती है।