आदर्श राठौर।। ये वो इमारत है जिसने जोगिंदर नगर की नींव डाली है। मगर अपनी नींवों को खोदना हम लोगों की आदत जो ठहरी। पता चला कि इसे भी ढहाने की तैयारी है ताकि नई बिल्डिंग बनाई जा सके। ढहाया इसलिए जाएगा क्योंकि सहेजना तो हमें आता नहीं है। इसलिए तोड़कर नई इमारत बनाएंगे फिर उसे रख-रखाव के अभाव में खस्ताहाल करेंगे, फिर ढहाएंगे और फिर बनाएंगे।
स्थानीय लोगों ने मांग की थी, प्रदर्शन किया था, तब जाकर स्कूल को राजा योगिंद्र सेन ने अपग्रेड किया था और नामकरण अपने बड़े बेटे यशोधन के नाम पर किया था।
पूरे मंडी जिले, बल्कि हिमाचल प्रदेश में आपको किसी सरकारी स्कूल में इतनी सुंदर बिल्डिंग नहीं मिलेगी। बड़े-बड़े हॉलनुमा कमरे जिनमें खिड़कियां ही खिड़कियां। सर्दी में खिड़कियां बंद करो तो धूप से पांच मिनट में कमरे गर्म और गर्मियों में खिड़कियां खोलो तो ठंडी हवा से गर्मी का अहसास ही गायब।
देवदार की तख्तियों से बनी दीवारों को ऐसे फोल्ड करने की सुविधा कि पांच कमरे एक हॉल का रूप ले लेते। आधी इमारत में नीले पत्थर की चिनाई और मुख्य हिस्सा धज्जी देवारी शैली में तैयार किया गया ताकि ढांचा भूकंप रोधी रहे। दरवाजे, खिड़कियां, सीलिंग- सब देवदार की लकड़ी से बने जो झंटिगरी से ढुलवाई थी।
इमारत मजबूती से खड़ी है। कहीं दीवारों से मिट्टी का लेप गिरा है, कहीं रंग-रोगन के अभाव में लकड़ी बेरंग हो गई है तो कहीं छत पर लगी टिन की चादरें जंग के कारण गल गई हैं।
ऊपर की मंजिल के फर्श पर लगी लकड़ी घिस गई है और कहीं-कहीं दरवाजे-खिड़कियां हुड़दंगी छात्रों की बहादुरी की भेंट चढ़ गए हैं। मगर क्या ये सब मरम्मत से ठीक नहीं हो सकता था? नहीं, क्योंकि आज से बीस साल पहले जब इस इमारत की एक लकड़ी की सीढ़ी खराब हुई थी तो उसे तोड़कर सीमेंट की सीढ़ी बना दी गई थी।
सीढ़ी तो लकड़ी की भी बन सकती थी मगर जहमत कौन उठाता? लकड़ी कहां से आती, लकड़ी के एक्सपर्ट कारीगर कहां से आते और स्कूल अपने स्तर पर इसका खर्च कैसे उठाता?
इच्छाशक्ति का अभाव तब भी था और आज भी है। इसी कारण ये इमारत उपेक्षा सहती रही और आज किसी ने इसका जीर्णोद्धार करने के बजाय स्थायी उद्धार करने की क्रांतिकारी योजना बना दी है।
दुखद है कि अटल और राजीव बोर्डिंग स्कूलों के शिगूफों के प्रचार पर पैसा खर्च हो सकता है मगर पहले से मौजूद स्कूलों की दशा सुधारने पर नहीं। और हेरिटेज की तो बात करना भी बेमानी है। हमारी सोच बन गई है कि घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध। हेरिटेज बिल्डिंग तो सिर्फ वही हो सकती है जिसपर सरकारी ठप्पा लगा हो कि हेरिटेज बिल्डिंग है। वो शिमला में हो सकती है, मंडी में हो सकती है न कि जोगिंदर नगर जैसे छोटे से क़स्बे में।
विरासत बनाने से बनती है, संभालने से संभलती है। हम इस सुंदर इमारत की जगह क्या बनाएंगे? कंक्रीट के पिलर और ईंट की दीवारों वाली आम बिल्डिंग?