मुर्दों को पलभर में चट कर जाती है यह देवी

मंडी: कश्मीर से आई सराज के देऊल की देवी मडमाखन को मुर्दे खाने की लत है। अगर इसके मार्ग में कोई शवयात्रा बाधा बन जाए तो वह मुर्दे को पलभर में चट कर जाती है। मंडी शिवरात्रि में यह देवी वर्षों से अपनी हाजिरी भर रही है। इसके साथ कुछ ऐसा इतिहास जुड़ा है जो आम जनमानस के रौंगटे खड़े कर सकता है। इस देवी को स्थानीय भाषा में देवलु मडमाखन के नाम से जानते हैं जबकि उन्हें गांव में देवी कश्मीरी नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि वह कभी कश्मीर से आई बताई जाती हैं। शिवरात्रि में देवी पंचवक्त्र मंदिर में ही विराजती हैं, जो श्मशानघाट के पास है। देवी के काफिले में आज भी एक विशेष तरह का बाजा बजाया जाता है, जिसमें माड़ा खाऊ, जिंदा खाऊ की अद्भुत व डरावनी आवाजें निकलती हैं।

राजा सूरज सेन ने लेनी चाही थी देवी-देवताओं की परीक्षा

देवता के कारदार गुलाब सिंह व पुजारी दौलत राम का कहना है कि किसी समय माता के रथ में 8 मोहरे थे, जिनमें इतनी शक्ति थी कि माता का रथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर उछल कर जाता था। राजा सूरज सेन ने जब मंडी में शिवरात्रि लगाई तो उस वर्ष जिला के सराज से सभी देवताओं को राज दरबार में कतारबद्ध खड़ा किया गया। राजा ने देवताओं की परीक्षा लेनी चाही और शर्त लगा दी कि जिस देवता का रथ उछल कर मेरे आसन तक आ जाए तो मैं उसकी शक्ति को मानूंगा। इतना कहते ही देवी मडमाखन उछल कर राजा के सिंहासन तक जा पहुंची और उसे अपना रौद्र रूप दिखाया।

राजा ने दिया था लोहे की जंजीरों से बांधने का हुक्म

देवी मडमाखन के रौद्र रूप से अंचभित होकर राजा ने मंडी शहर के समीप पंचवक्त्र श्मशानघाट में स्थित महाकाल मंदिर में देवी को लोहे की जंजीरों से बांधने का हुक्म दिया और उसे आदरपूर्वक इस स्थान पर प्रतिवर्ष बैठने को स्थायी स्थल दिया। तब से लेकर आज तक देवी अपने हारियानों के साथ इस स्थल पर पूरे शिवरात्रि महोत्सव में रात्रि ठहराव करती हैं और यहां पूरी रात माता को हारियानों के पहरे में रखा जाता है।

हारियानों ने शक्ति ज्यादा होने पर उतार दिए हैं देवी के 7 मोहरे

दौलत राम का कहना है कि उस समय देवी में कुल 8 मोहरे थे लेकिन ज्यादा शक्ति होने के चलते हारियानों ने बाकी के 7 मोहरे उतार दिए। देवी का गांव देऊल सराज में एक ऐसा देवालय है जो पानी के ऊपर बना है। गांव में जब भी कोई व्यक्ति मर जाए तो मुर्दे की पहली चादर देवी मडमाखन को चढ़ाई जाती है लेकिन समय बदलते ही अब केवल पुजारी के घर जब किसी सदस्य का स्वर्गवास हो जाता है तो पहली चादर देवी को चढ़ाई जाती है। राजा सूरज सेन की ओर से देवी को गांव में ही बांधकर रखने के लिए एक खास सूत का रस्सा दिया गया है, जो आज भी देवालय में मौजूद है।